आज फिर हाथ जोड़ा है...
कपकपाती रुह में
बेइंतहां कसक है
अनगिनत अनसुलझे सवाल हैं
भीड़ को रौंदती तन्हाई और
दर्द भी थोड़ा है
लेकिन शिकवा करुं तो किससे
क्योंकि
कतरा कतरा
तिनका तिनका
जाने-अनजाने
मैंने हीं तो इन्हें जोड़ा है
और अब
जिन्दगी की इस धुंध भरी राह में
जब आगे नहीं दिख रहा कुछ
तो ये सफर
अब उसपर हीं छोड़ा है
आज फिर हाथ जोड़ा है.....
नादान दिल की फितरत ठीक नहीं
ना मिले तो रोए बच्चों सा
जो मिले सो खोए बच्चों सा
हर रिश्ता खुद हीं तोड़े
फिर कोने में बैठकर
आंसू भी बहाए थोड़े थोड़े
पर अब जब इसे संभाल कर
नया सपना जोड़ा है
तो अबकी किस्मत ने साथ छोड़ा है
सही गलत की दम तोड़ती समझ के बीच
अब सब उसपर हीं छोड़ा है
आज फिर हाथ जोड़ा है
"नादान दिल की फितरत ठीक नहीं
ReplyDeleteना मिले तो रोए बच्चों सा
जो मिले सो खोए बच्चों सा
हर रिश्ता खुद हीं तोड़े
फिर कोने में बैठकर
आंसू भी बहाए थोड़े थोड़े"
बेहद ख़ूबसूरत और भावपूर्ण अभिव्यक्ति। अच्छा लिखते हैं आप... बिल्कुल दिल से। बाबा के दर पर जो प्यार और भरोसा मिलता है उसमें ज़िदंगी का सारा खालीपन घुल सा जाता है... और कोई शिक़वा नहीं बचता।
बहुत अच्छा ब्लॉग बनाया है आपने :))
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ReplyDeleteशुक्रिया मीनाक्षी जी.... आपने ब्लाग के लिए वक्त निकाला, अच्छा लगा... और हां, हमेशा हीं मन की करता आया हूं...मन की कहता आया हूं... और मन की सुनता आया हूं...तो अब मन(ब्लॉग) में हीं मन से न लिखूं, ऐसा तो हो ही नही सकता था.... आगे भी कोशिश जारी रहेगी.... :)
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