Saturday, May 23, 2009

आज फिर हाथ जोड़ा है....

आज फिर हाथ जोड़ा है...
कपकपाती रुह में
बेइंतहां कसक है
अनगिनत अनसुलझे सवाल हैं
भीड़ को रौंदती तन्हाई और
दर्द भी थोड़ा है
लेकिन शिकवा करुं तो किससे
क्योंकि
कतरा कतरा
तिनका तिनका
जाने-अनजाने
मैंने हीं तो इन्हें जोड़ा है
और अब
जिन्दगी की इस धुंध भरी राह में
जब आगे नहीं दिख रहा कुछ
तो ये सफर
अब उसपर हीं छोड़ा है
आज फिर हाथ जोड़ा है.....


नादान दिल की फितरत ठीक नहीं
ना मिले तो रोए बच्चों सा
जो मिले सो खोए बच्चों सा
हर रिश्ता खुद हीं तोड़े
फिर कोने में बैठकर
आंसू भी बहाए थोड़े थोड़े
पर अब जब इसे संभाल कर
नया सपना जोड़ा है
तो अबकी किस्मत ने साथ छोड़ा है
सही गलत की दम तोड़ती समझ के बीच
अब सब उसपर हीं छोड़ा है
आज फिर हाथ जोड़ा है

Monday, May 18, 2009

आखिरकार एक ऐसा चुनाव जो समझ से परे नहीं है.....

पिछले दो महीने की हर रोज़ की चिकचिक और झिकझिक के बाद आखिरकार चुनावों के नतीजे आ गए... लेकिन इन नतीजों ने बतौर युवा मुझे बहुत उत्साहित किया.... इसलिए नहीं कि जीत कांग्रेस की हुई... बल्कि इसलिए की जीत सालों बाद आम आदमी की हुई... "कई बातें ऐसी होती है ,जिन्हें शब्दों की सजा नहीं देनी चाहिए ..देखा जाए तो यह धरती मजबूरियों का लम्बा इतिहास है"...किसी करीबी के ब्लाग पर अमृता प्रीतम की ये पंक्तियां पढ़ रहा था तो लगा जैसा बिलकुल आज के लिए मौजूं हैं ये पंक्तियां... नेता दो महीने तक चिल्लाते रहे... गाली-गलौच, नोच-खसोट, तरह तरह के हथकंडे अपनाते नेता सिर्फ वोट के लिए, क्या नहीं देखने को मिला इस दौरान... पर आम आदमी चुपचाप सब देखता रहा बिना कुछ कहे... बिना इन बातों को शब्दों की सज़ा दिए उसने हर उस नेता को हार की सबसे बड़ी सज़ा दी जो जीत के हक़दार नहीं थे... वरना किसने सोचा था कि बिहार में रामविलास जैसे नेता की हार होगी वो भी उस सीट पर जहां से वो कभी नहीं हारे और जीते तो अक्सर रिकार्डतोड़ अंतर से...और रामविलास अकेले नहीं हैं.. कई बड़े और दिग्गज नेताओं को जनता ने सच्चाई का आईना दिखाया... और खुशी इसी बात की है इन नेताओं को चुनने की मजबूरी के लंबे इतिहास, के इतिहास बनने की शुरुआत हो गयी है... मुझे इन चुनावों में तीन बातों की सबसे ज्यादा खुशी हुई...

1. बिहार ने देश का भ्रम तोड़ दिया कि वहां कभी विकास के लिए वोट नहीं डाले जा सकते... मैं खुद बिहार से हूं... और एंकरिंग करते वक्त सांसें थामें इंतज़ार कर रहा था बिहार से आने वाले एक एक नतीजे का... क्योंकि ये चुनाव बिहार के लिए किसी लिटमस टेस्ट से कम नहीं था... और मुझे पता था कि इसबार नहीं तो कभी नहीं... अगर बिहार ने नीतीश कुमार के काम पर रियैक्ट नहीं किया तो बिहार के लिए बहुत बुरा होगा... पर अजीबोगरीब खुशी महसूस कर रहा हूं नतीजों को देख कर...इन नतीजों को देखकर तो एकबारगी ऐसा लगा जैसे कास्ट पालिटिक्स तो कभी थी हीं नहीं बिहार में....इतना हीं नहीं, जार्ज फर्नांडिस जैसे कद्दावर मगर बुज़ुर्ग नेता कि हार ने दिखाया कि लोगों को अब सिर्फ काम से मतलब है नाम से नहीं... और काम करने के लिए बूढ़ी हड्डियां नहीं बल्कि नया जोश चाहिए... खुश हूं कि लोगों ने बिहार की हार को रोक दिया...

2. दूसरी सबसे बड़ी खुशी की बात रही.. दागी नेताओं की हार... बिहार हो या यूपी या फिर देश का कोई और हिस्सा... जनता ने, क्रिमिनल जो आजकल नेता कहलाते हैं, उनहें बताया कि उनकी जगह लोकतंत्र के मंदिर में नहीं बल्कि कहीं और है... बिहार में भी, न सिर्फ शहाबुद्दीन, सूरजभान और पप्पू यादव जैसे नेताओं के रिश्तेदार हारे (इनके न लड़ पाने की सूरत में इनकी पत्नियां मैदान में थीं... पप्पू यादव की तो मां भी चुनाव लड़ी रही थीं.) बल्कि जेडीयू के जादू के बावजूद भी इसी पार्टी के प्रभुनाथ सिंह और मुन्ना शुक्ला जैसे दागी प्रत्याशियों को वोटर नहीं पचा पाया... य़ूपी में भी यही हाल रहा... मुख्तार अंसारी हो या कोई और... सबके गुनाहों की पहली सज़ा उन्हें जनता ने दे दी और बता दिया कि उनकी दबंगई अब नहीं चलेगी....

3. तीसरी बड़ी खुशी इस बात से हुई कि सरकार कि ताकत इतनी है(नंबर के मामले में) कि छोटी मोटी पार्टियों की हर छींक से उसे घबराने की जरुरत नहीं है... एक देश के विकास के लिए ये बहुत जरुरी है कि सरकार को काम करने की स्वतंत्रता और निर्भीकता मिले... ये नहीं कि छोटी छोटी पार्टीयां कनपट्टी पर बंदूक ताने रहें चौबीसो घंटे और सरकार गिरा देंगे कि धमकी के नाम पर मनचाहा पोर्टफोलियो हासिल करें और हर नीति पर नासमझी का तर्क देती रहें... ऐसी बारगेनिंग करने वाली पार्टियों के लिए भी सबक हैं ये नतीजे...

यानि बहुत साफ है कि जय हो कांग्रेस की नहीं बल्कि 'जय हो वोटर' होना चाहिए क्योंकि वो अब परिपक्व हो रहा है और उसके दिए नतीजे किसी के भी समझ के परे नहीं हैं.....

नोट:- वोटर कि इस जागरुक्ता का थोड़ा श्रेय रात रात भर जाग कर काम करने वाले मीडियाकर्मियों को भी दिया जाना चाहिए जो हर कच्चा चिठ्ठा जनता के सामने रखते आये... माना कि राखी सावंत थोड़ा ज्यादा दिखा दिया लेकिन ऐन वक्त पर हमने भी परिपक्वता दिखा दी...

Monday, May 11, 2009

क्या मैं भी एक दिन इन जैसा हो जाऊंगा........???

नौ महीने के अंधकारवास के बाद
मैं जब इस दुनिया में आया
खुश होने की बजाए जाने क्यों
बहुत रोया, और खूब चीखा चिल्लाया...
उठना, रोना, खाना और सोना
कुछ महीनों तक तो यही चला
हर थोड़ी देर पर आंखे खोल दुनिया को घूरता था
और अपनी निठ्ठली किस्मत पर रोता था
शायद सदमा इतना था कि हर थोड़ी देर में नींद की बेहोशी में होता था...
पल दो पल की देखी में हीं
शायद समझ गया था मैं
इस काली नगरी में मैं भी काला सन जाऊंगा
और शायद एक दिन मैं भी इन जैसा हो जाऊंगा....

मुझसे ज्यादा चिंता मेरे रंग की थी
गोरा, काला या फिर गहरा सांवला
इसपर घंटों चिंता होती थी
मेरे सिर पर बाल कम क्यों हैं
इसका जवाब ढूंढने में लोगों ने अपने बाल नोच डाले
आंख, नाक, मुंह, कान और पता नहीं कौन कौन से अंग
किससे मिलते हैं
इसके जवाब पर तो जिसे मौका मिलता था वही अपना हक जमा ले...
मेरी हर छींक के सौ से ज्यादा कारण थे
और उसका इलाज बताने वाले
वो भी कहां साधारण थे...
मेरा तो ये सब देख देख कर बुरा हाल था
और मेरे डरे, सहमे पिद्दी से दिल में बस यही सवाल था
कि मैं ये सब कब तक सह पाऊंगा
और क्या एक दिन मैं भी इन जैसा हो जाऊंगा....???

पर धीरे धीरे मैं भी एडजस्ट करने लगा
इस दुनिया के अजीबो गरीब रंग में ढ़लने लगा
लेकिन अब भी मेरे हर फैसले पर
किसी न किसी का अमेरीका सा अधिकार मुझे कचोटता था
और मैं यही सोचता था
कि मेरा स्कूल तय करने से पहले ये मुझसे क्यों नहीं पूछते
क्योंकि हर दिन उस स्कूल से 8 घंटे, ये तो नहीं जूझते...
मुझे कौन सा खेल पसंद हो
ये खेल खेल में तय हो जाता है
मुझे हर वही चीज़ मन भाए
जो परिवार के बजट में समाता है
मेरी कोचिंग का नाम भी
उस कोचिंग के पिछले बैच के बच्चों के मार्कस तय कर देते हैं
और विद्रोह का बिगुल फूंको तो सबकुछ तुम्हारे लिए हीं तो किया
ये पलट कर मुझसे कह देते हैं...
मेरे जीवन पर ये सीनाजोरी कबतक चलेगी
और कब तक मैं इस कैद में बंद रह पाऊंगा...
पर उससे भी बड़ा सवाल है
कि क्या एक दिन मैं भी इन जैसा हो जाऊंगा... ???

थोड़ा और बड़ा हुआ, कॉलेज पहुंचा
यहां के तो ढंग हीं निराले थे
सारे सिखिया पहलवान सुंदरीयों के जबरन बना दिए गए भाई
और हर मुशटंडे के निस्वार्थ साले थे
जिसको देखो, करियर...करियर चिल्लाता फिरता था
और जो वो बनना चाहते थे उसका पढ़ाई से निपट नहीं कोई नाता था
परिवार की झूठी आन, बान और शान के लिए
जिन्दगी के सुनहरे दिन और कोरे कागज
दोनों काले कर दिए
हमारे जीवन के उठने, बैठने, जगने, सोने और नित्य क्रियाओं तक के
सारे कार्यक्रम और समय प्रिंसीपल नाम के निगोड़े ने तय किए
कॉलेज के गेट पर बैठा
यही सोचता रहता था
कब तक इनके बनाए रस्तों पर मैं आंखें भींचे चल पाऊंगा
कहीं एक दिन मैं भी इन जैसा तो नहीं हो जाऊंगा....

अब तो नौकरी करता हूं
दिनभर बॉस की हां में हां, कईयों को भरते देखता हूं
जीवन कैसे जीना है, आगे कैसे बढ़ना है
दूसरों के अलौकिक इतिहास की गाथाएं
किसी तीसरे के मुंह से सुनकर पकता रहता हूं
शादीशुदा मशीनों से भी मिलना हो जाता है
जिन्हें कब बीवी, बच्चे, ससुराल या फिर बॉस के मोड में चलना है
ये भी कोई और हीं बताता है
एक जीवन मिला था, जो सबने किसी और के मुताबिक जीया
कौन क्या सोचेगा, ये किया तो क्या होगा, हार गए तो....
ये सब सोचने में हीं व्यर्थ कर दिया
पर क्या मैं अपना जीवन अपनी मर्ज़ी से जी पाऊंगा
या फिर एक दिन मैं भी इन जैसा हो जाऊंगा........

Tuesday, May 5, 2009

जीत की हवस नहीं, किसी पर कोई वश नहीं.......

आज दफ्तर में ऐसा कुछ हुआ जिससे इस बात में यकिन और बढ़ने लगा है कि लोगों में जीत की हवस और दूसरों पर हावी होने की भूख बढ़ती जा रही है.... और जब ऐसा नहीं हो पाता तो वो बहुत परेशान हो जाते हैं और कुछ ऐसे तरीके से बर्ताव करते हैं जिसे अगर बाद में, शांत मन से वो खुद कसौटी पर उतारें तो शर्मिंदा महसूस करें....
दरअसल सच ये है कि हम सब इस दुनिया में एक अनुभव के लिए आए हैं.... हम जो हैं वो हम हैं और हम खुश हैं... वैसे हीं कोई दूसरा भी एक अलग पहचान, एक अलग व्यक्तित्व, एक अलग सोच के साथ इस दुनिया में आया है और वो वैसा हीं है और वो खुश है ... हमारा एक-दूसरे से अलग होना हीं हमारी पहचान है... हमारे बीच का अंतर हमें परेशान कर सकता है लेकिन तभी तक जब हम उस अंतर पर ध्यान दे रहे हैं... जिस दिन हम इस बात पर ध्यान देंगे कि वो क्या है जो हम चाहते हैं, जो हमें खुशी देता है... हमारा ध्यान खुद ब खुद उस अंतर पर से हट जाएगा जो हमें तकलीफ दे रहा था...
हम इस दुनिया में इसलिए नहीं आए कि हर किसी को वही सच मानने पर मजबूर कर दें जो हमें लगता है कि सच है, या हर किसी को उसे हीं सही मानने के लिए बाध्य करें जो हमें लगता है कि सही है... या लोग उसे हीं खूबसूरत या बढ़िया माने जो हमें लगता है कि खूबसूरत या बढ़िया है.... नहीं... हम इसलिए नहीं आए हैं... हम सारी दुनिया को अपने जैसा बनाने नहीं आए हैं... क्योंकि जिस दिन ऐसा हो गया, हमारा आगे बढ़ना, इवौल्व होना, रुक जाएगा....
लेकिन जाने-अनजाने हम सब कर यही रहे हैं... हम चाहते हैं कि सब वैसा हीं सोचें जैसा मैं सोचता हूं... सब वही करें जो मुझे लगता है कि सही है... मेरा सच उनके लिए सच हो... जो जो मैंने अपने जीवन में किया वो सबके लिए आदर्श हो और सब वैसा हीं करें... जबकि ऐसा नहीं है... हर कोई अपना जीवन जीने के लिए इस दुनिया में है... हम हमारे आसपास वैसी हीं दुनिया बनाते जाते हैं जैसी दुनिया हम चाहते हैं लेकिन दूसरे को ऐसा करने से रोकते हैं... हमारी दुनिया में हमारी मर्जी के बिना कोई नहीं आ सकता... कोई भी नहीं... लेकिन हम दूसरों की दुनिया में बिना इजाज़त घुसे चले जाते हैं... दरअसल हम दूसरों को, उनके जीवन को, उनकी भावनाओं को अपने मुताबिक कंट्रोल करना चाहते हैं... और यहीं से शुरुआत होती है सारी तकलीफों की.... हमें दूसरों पर कंट्रोल पाने की आदत से छुटकारा पाना होगा... इस आदत को बदलना होगा... और जैसे जैसे हम ऐसा करते जायेंगे हम खुद ब खुद उस मंज़िल की तरफ आसानी से बढ़ते जायेंगे जिसे हासिल करने के लिए हम इस दुनिया में आये हैं... हम सिर्फ खुद पर कंट्रोल रख सकते हैं... दूसरों पर कंट्रोल पाने की फितरत छोड़नी होगी... जैसे हम चाहते हैं कि हमें अपने मन मुताबिक जीवन जीने का मौका मिले, वैसा हीं मौका हमें दूसरों को भी देना होगा... वरना नुकसान सिर्फ सामने वाले का नहीं, खुद हमारा भी होगा...

Sunday, May 3, 2009

!!! ये शहर काति़ल है !!!

(बड़े शहर में आये कुछ हीं साल गुज़रे हैं.... लेकिन अमूमन जब भी दोस्तो से या खुद से बातें करता हूं तो अनायास हीं ये बात मुंह से निकल जाती है कि 'मुझे ये शहर पसंद नहीं...'
एक दिन शांत दिमाग से बैठकर सोचा कि जिस शहर ने इतना दिया वो मुझे पसंद क्यों नहीं....??? जवाब नीचे लिख रहा हूं....हालांकि ये बताना भी लाज़मी है कि लिखते वक्त बैकग्राउंड में 'ये दिल्ली है मेरे यार' गाना भी चल रहा है...)


एक लाश पड़ी है
चारों तरफ भीड़ खड़ी है
सब शांत हैं, हैरान हैं, परेशान हैं
पर उनमें भी बाकि बची कहां जान है
और वो लाश जिसपर सबकी नजर है
वो मेरी है
लेकिन कातिल कोई इंसान नहीं बल्कि ये ‘शहर’ है


छोटे शहर के बड़े सपने, और ये महानगर
जाने कितनों को मार दिया जिन्दगी में घोल के जहर
रिश्ते-नाते…... इनके बिना जिंदगी अधूरी थी
यहां तो बिन काम किसी से मिलना मानो मजबूरी थी
राम हूं... राम हूं... सीता मिलेगी
इस बात का जाने कितना हल्ला मचाया
पर यहां तो हर सीता को
पांचाली बना पाया
हर रोज़ की महाभारत ने मेरा राम भी मार दिया
और चूं-चपड़ की तो Modern Culture का तीर धनुष तान दिया

यहां मां Mom तो पिता Pop है
बेटी बड़ी है, लेकिन बाप के सामने पहना डेढ़ बीत्ते का Top है
सब दिख रहा है.....पर किसे ???
इस सवाल का जवाब ढूंढे नहीं मिल रहा है

पूरा शहर वृंदावन बना है
हर प्रेमी जोड़ा कृष्ण और राधा है
फिज़ा में प्यार तो है
पर जो तब था और अब नहीं है वो मर्यादा है


दुपहिये पर पीछे बैठने वाली हर लड़की Girl Friend है
बहन को साथ घुमाना कहां आज का Trend है
यहां सब प्रैक्टिकल हैं... कूल हैं.....
और जो रिश्तों को दिल से लगाये
वो यहां इमोशनल Fool हैं

यहां Virgin होना शर्मनाक है
हमारे यहां को तमगा यहां छुपाने की बात है
बोलते हिंदी हैं
पर जब करना कुछ गलत हो तो उसे अंग्रेजी में ढ़ालते हैं
रेव पार्टी, वाइफ स्वैपिंग या Escort
यहां किसी को नहीं सालते हैं
मैं तो देख-देख हीं मर गया
पर इनके लिए.. इनके लिए तो यही जिन्दगी है शायद…


इसी महानगर में 14 साल की एक बच्ची मरी
साल की सबसे बड़ी मर्डर मिस्ट्री की खबर बनी
बाप ने मारा.... नौकर ने मारा.....
हत्यारा ढूंढने के लिए आज भी मचा है कहर
लेकिन गौर से देखो
उस जैसे कितनों को मारकर
मुस्करा रहा है ये कातिल शहर...........