Wednesday, July 8, 2009

सही गलत क्या है....???

मन बार बार पूछता है
क्या है सही
क्या है गलत
तय करेगा कौन
कौन उठायेगा ये ज़हमत

पर बंध सी गयी है जिन्दगी
सही-गलत के दायरे में
मन के कोरे कागज पर
सपनों की कलम कुछ नया लिखती ही नहीं
पन्ने तो सारे भर रहे हैं
किसी और का हीं लिखा सुनकर, इस जीवन के मुशायरे में

जब सब पहले से तय कर
उसने भेज दिया हमें किरदार निभाने
तो हम क्यों लगे हैं
कौन हीरो, कौन विलेन
ये खुद से तय कर
उसकी काबिलियत को आज़माने

क्यों न हर रिश्ता दिल से जीयें
क्यों न हर बंधन प्यार के धागे से सीयें
क्या सही किया, क्या नहीं
इस परख को क्यों न मार दें आज यहीं
क्यों हो हमारे हर फैसले की सुनवाई
दिल के सही-गलत की कचहरी में
जब हमारे बस में नही जिन्दगी
तो क्यों न भूला दें हर गम मस्खरी में
हर दिन एक अनुभव हो
बस अनुभव
सही गलत, गलत सही
बहुत हुआ, बस अब और नहीं
बस अब और नहीं.....

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