Sunday, April 22, 2012

आज तुम्हारे कमरे में.....

(कहते हैं जीवन में प्यार सबसे खूबसूरत एहसास है... सच है... लेकिन कभी अगर वो प्यार बिछड़ जाए तो मन में एक बड़ा हिस्सा सा खाली रह जाता है.. मानो एक कमरा, जिसमें वो सारी यादें होती हैं जो उस प्यार से जुड़ी हों... और उस कमरे की चाभी जैसे वो शख्स साथ लेकर चला गया हो... आप उस कमरे में झांक तो सकते हैं लेकिन उसे न तो खोल सकते हैं, न तोड़ सकते हैं और न किसी और को दे सकते हैं... )

आज तुम्हारे कमरे में फिर झांका...
कुछ यादें मेज़ पर बिखरी पड़ी थीं...
तुम्हारी मुस्कुराहट आज भी हवा में तैर रही थी...
कमरे का हर कोना आज भी तुम्हारे बदन की खुशबू से महक रहा था...

फर्श गीली थी..
शायद मेरे आंसू दरवाज़े के नीचे से तुम्हें ढूंढने गए होंगे...
पर्दे के पीछे आज भी तुम्हारी शर्म छिपी बैठी थी...
और पूरा कमरा तुम्हारे सुनहरे रंग से आज भी दमक रहा था..

बिछावन की सिलवटों के बीच
तुम्हारे साथ बिताए पल दबे पड़े थे...
तुम्हारे हाथों में हाथ लिए, तुम्हें निहारती आंखें
कोने में तकिए के नीचे मिलीं...

आइना अब भी तुम्हारे गोरे चेहरे से लिपटा
मेरा श्यामल चेहरा सीने से लगाए बैठा है...
पगला कहीं का...

वहां, उधर.. कितनी किताबें पड़ी हैं
जिनके पन्नों के बीच हमारे ऱुठने मनाने के किस्से रखे हैं...
और जिन पन्नों पर तुम्हें खत लिखे थे
उन्हें कमबख्त हवा बिखेर गई है...

तुम्हारी खिलखिलाहट कमरे में गूंज रही थी
न जाने फिर भी, मेरे अंदर इतना सन्नाटा क्यों था...

ज़ोर-ज़ोर से दरवाजा पीटता हूं,
लेकिन जो ताला तुम लगा गई थी,
वो खुलता नहीं...

वक्त  बहुत गुजर गया है...
लेकिन यादों के इस कमरे पर धूल भी नहीं जमती...
पर मन मानों जम गया है..
थोड़ी देर इस कमरे में झांकता हूं
तो पुरानी यादें, गर्माहट दे जाती हैं...


पर... जानता हूं, अब तुम नहीं आओगी,
लेकिन मेरी सांसें तो लौटा दो,
जो वहीं, उसी कमरे में रह गई हैं...

और नहीं तो कम से कम
इस मुर्दा शरीर को दफना जाओ...
ताकि उन बेचैन सांसों को सांस मिले...