Monday, October 12, 2015

आंखों की चमक जाती रही है

(कभी कभी मुझे लगता है कि शादी को लेकर लड़कियों के सपने और अरमान लड़कों से कहीं ज्यादा बड़े होते हैं... बचपन में गुड्डे गु़ड्डी की शादी से लेकर बड़े होकर अपनी शादी तक के बीच लड़कियां एक दुनिया गढ़ लेती हैं... फिर इन्गेजमेंट के बाद और शादी से पहले तक का जो वक्त होता है उस दौरान उन्हें लड़का अपने सपनों के राजकुमार सा लगता है.. लेकिन शादी के बाद तस्वीर बदलने लगती है.. दुनिया बदलने लगती है... और फिर वो सिर्फ़ खुद को ढाल रही होती है... कहने को तो नदी भी बांध में बंधकर उस रूप सी ढल ही जाती है.. लेकिन उसकी खुशी बंधने में नहीं, बहने में है। )
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उसके आंखों की चमक जाती रही है...
जाने कौन सी चिन्ता उसे खाती रही है...
हंसी का झूठापन अब करने लगा है बयां
शायद वो ख़ुद अपने अरमानों का गला दबाती रही है।

पग फेरे तक तो सपने साथ लाई थी...
सखियों से भी किस्से सारे कह आई थी...
पर गृहस्थी के फेर में सब छूट गया है...
दिल का वो बच्चा मानो रूठ गया है...
कोने में पड़े मेज़ की निचली दराज़ बताती है
वो खुशियां अपनीं वहीं छुपाती रही है।

सपनों की दुनिया वाले मंगेतर से 'यही दुनिया है' बताने वाले शौहर तक...
ऐसा तो होना हीं था, ख़ुद को ये समझाती रही है।
ढल जाने की ढाल के पीछे...
सच से नज़रें चुराती रही है...
बुझ गई है उम्मीद की आख़िरी लौ भी शायद
तभी तो.......
उसके आंखों की चमक अब जाती रही है...
उसके आंखों की चमक अब जाती रही है।

Sunday, February 1, 2015

डर लगता है...

हम सब जीवन में कभी न कभी, किसी न किसी तरह के डर से जूझते रहते हैं... कुछ न कुछ.. कहीं न कहीं.. कुछ है जो अंदर घर कर जाता है और डराता रहता है... ऐसे ही कुछ डर को शब्द दिए हैं... ये सारे तो नहीं, पर इनमें से कोई न कोई डर, कभी न कभी शायद सबके हिस्से आता है।
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रूठ जाने में भी अब डर लगता है
जाने कोई मनाएगा कि नही...
घर छोड़कर आने में भी अब डर लगता है,
जाने कोई बुलाएगा भी कि नहीं।

थम जाने में भी अब डर लगता है
जाने कोई हाथ पकड़कर साथ ले जाएगा कि नहीं...
निकलने में सफ़र पर भी डर लगता है,
जाने मुसाफ़िर मंज़िल पाएगा कि नहीं।

ख़ामोश रहने में अब डर लगता है
जाने गुफ़्तगू छेड़ने कोई आएगा कि नहीं...
सब कह देने में भी तो डर लगता है,
जाने कोई समझ पाएगा कि नहीं।

देखने में सपने डर लगता है
जाने सुबह कोई नींद से जगाएगा कि नहीं...
और कभी कभी तो डर जाने से भी डर लगता है,
जाने कोई आंचल में छुपाएगा कि नहीं।