Monday, May 18, 2009

आखिरकार एक ऐसा चुनाव जो समझ से परे नहीं है.....

पिछले दो महीने की हर रोज़ की चिकचिक और झिकझिक के बाद आखिरकार चुनावों के नतीजे आ गए... लेकिन इन नतीजों ने बतौर युवा मुझे बहुत उत्साहित किया.... इसलिए नहीं कि जीत कांग्रेस की हुई... बल्कि इसलिए की जीत सालों बाद आम आदमी की हुई... "कई बातें ऐसी होती है ,जिन्हें शब्दों की सजा नहीं देनी चाहिए ..देखा जाए तो यह धरती मजबूरियों का लम्बा इतिहास है"...किसी करीबी के ब्लाग पर अमृता प्रीतम की ये पंक्तियां पढ़ रहा था तो लगा जैसा बिलकुल आज के लिए मौजूं हैं ये पंक्तियां... नेता दो महीने तक चिल्लाते रहे... गाली-गलौच, नोच-खसोट, तरह तरह के हथकंडे अपनाते नेता सिर्फ वोट के लिए, क्या नहीं देखने को मिला इस दौरान... पर आम आदमी चुपचाप सब देखता रहा बिना कुछ कहे... बिना इन बातों को शब्दों की सज़ा दिए उसने हर उस नेता को हार की सबसे बड़ी सज़ा दी जो जीत के हक़दार नहीं थे... वरना किसने सोचा था कि बिहार में रामविलास जैसे नेता की हार होगी वो भी उस सीट पर जहां से वो कभी नहीं हारे और जीते तो अक्सर रिकार्डतोड़ अंतर से...और रामविलास अकेले नहीं हैं.. कई बड़े और दिग्गज नेताओं को जनता ने सच्चाई का आईना दिखाया... और खुशी इसी बात की है इन नेताओं को चुनने की मजबूरी के लंबे इतिहास, के इतिहास बनने की शुरुआत हो गयी है... मुझे इन चुनावों में तीन बातों की सबसे ज्यादा खुशी हुई...

1. बिहार ने देश का भ्रम तोड़ दिया कि वहां कभी विकास के लिए वोट नहीं डाले जा सकते... मैं खुद बिहार से हूं... और एंकरिंग करते वक्त सांसें थामें इंतज़ार कर रहा था बिहार से आने वाले एक एक नतीजे का... क्योंकि ये चुनाव बिहार के लिए किसी लिटमस टेस्ट से कम नहीं था... और मुझे पता था कि इसबार नहीं तो कभी नहीं... अगर बिहार ने नीतीश कुमार के काम पर रियैक्ट नहीं किया तो बिहार के लिए बहुत बुरा होगा... पर अजीबोगरीब खुशी महसूस कर रहा हूं नतीजों को देख कर...इन नतीजों को देखकर तो एकबारगी ऐसा लगा जैसे कास्ट पालिटिक्स तो कभी थी हीं नहीं बिहार में....इतना हीं नहीं, जार्ज फर्नांडिस जैसे कद्दावर मगर बुज़ुर्ग नेता कि हार ने दिखाया कि लोगों को अब सिर्फ काम से मतलब है नाम से नहीं... और काम करने के लिए बूढ़ी हड्डियां नहीं बल्कि नया जोश चाहिए... खुश हूं कि लोगों ने बिहार की हार को रोक दिया...

2. दूसरी सबसे बड़ी खुशी की बात रही.. दागी नेताओं की हार... बिहार हो या यूपी या फिर देश का कोई और हिस्सा... जनता ने, क्रिमिनल जो आजकल नेता कहलाते हैं, उनहें बताया कि उनकी जगह लोकतंत्र के मंदिर में नहीं बल्कि कहीं और है... बिहार में भी, न सिर्फ शहाबुद्दीन, सूरजभान और पप्पू यादव जैसे नेताओं के रिश्तेदार हारे (इनके न लड़ पाने की सूरत में इनकी पत्नियां मैदान में थीं... पप्पू यादव की तो मां भी चुनाव लड़ी रही थीं.) बल्कि जेडीयू के जादू के बावजूद भी इसी पार्टी के प्रभुनाथ सिंह और मुन्ना शुक्ला जैसे दागी प्रत्याशियों को वोटर नहीं पचा पाया... य़ूपी में भी यही हाल रहा... मुख्तार अंसारी हो या कोई और... सबके गुनाहों की पहली सज़ा उन्हें जनता ने दे दी और बता दिया कि उनकी दबंगई अब नहीं चलेगी....

3. तीसरी बड़ी खुशी इस बात से हुई कि सरकार कि ताकत इतनी है(नंबर के मामले में) कि छोटी मोटी पार्टियों की हर छींक से उसे घबराने की जरुरत नहीं है... एक देश के विकास के लिए ये बहुत जरुरी है कि सरकार को काम करने की स्वतंत्रता और निर्भीकता मिले... ये नहीं कि छोटी छोटी पार्टीयां कनपट्टी पर बंदूक ताने रहें चौबीसो घंटे और सरकार गिरा देंगे कि धमकी के नाम पर मनचाहा पोर्टफोलियो हासिल करें और हर नीति पर नासमझी का तर्क देती रहें... ऐसी बारगेनिंग करने वाली पार्टियों के लिए भी सबक हैं ये नतीजे...

यानि बहुत साफ है कि जय हो कांग्रेस की नहीं बल्कि 'जय हो वोटर' होना चाहिए क्योंकि वो अब परिपक्व हो रहा है और उसके दिए नतीजे किसी के भी समझ के परे नहीं हैं.....

नोट:- वोटर कि इस जागरुक्ता का थोड़ा श्रेय रात रात भर जाग कर काम करने वाले मीडियाकर्मियों को भी दिया जाना चाहिए जो हर कच्चा चिठ्ठा जनता के सामने रखते आये... माना कि राखी सावंत थोड़ा ज्यादा दिखा दिया लेकिन ऐन वक्त पर हमने भी परिपक्वता दिखा दी...

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