Friday, July 24, 2009

ये नाइंसाफी क्यों ???

जीवन में वैसे तो आजकल सोचने और दुखी होने के लिए वैसे हीं कुछ कम बातें नही हैं... लेकिन कल अचानक एंकरिंग करते करते कान में पीसीआर से आयी खबर ने हद से ज्यादा दुखी किया और बहुत कुछ सोचने पर मजबूर कर दिया... खबर पटना की थी, जहां का मैं रहने वाला हूं.... एक लड़की के साथ बीच सड़क पर, सैंकड़ों की भीड़ के सामने बदसलूकी की गयी... और शायद बदसलूकी भी कम शब्द है.. क्योंकि उस लड़की को उस भीड़ में, बीच सड़क पर, सरेआम नंगा कर दिया गया... कैमरा भी था वहां,सबकुछ अपने अंदर उतारता हुआ ताकि उस लड़की की बेइज्जती को और सार्वजनिक बनाया जा सके... उसके कपड़े और इज्ज़त तार तार कर दिए गए...तस्वीरें देखकर पता नहीं क्यों पर मैं शून्य में चला गया...बिलकुल ब्लैंक था मैं... लेकिन तब तक उपर से कान में एक और निर्देश आया कि विजुअल देखकर कमेंट्री करें... ऐसा लगा जैसे सीना चीर दिया हो किसी ने... एक लड़की की जिन्दगी बीच सड़क पर कैसे सबके सामने बर्बाद कर दी गयी इसपर संजय की तरह आंखों देखा हाल बताऊं... दिल सचमुच अंदर से रोता रहा और मैं बोलता रहा... थोड़ी देर बाद बुलेटिन खत्म हो गया.... पर वो तस्वीरें ज़हन से जाती नहीं... वैसे भी दो-तीन दिन से ढंग से सोया नहीं पर जब आंखें बोझिल होती हैं तो अचानक से उस लड़की का ख्याल आ जाता है... क्या वो सो पा रही होगी... क्या बीत रही होगी उसपर... और वो, वो कैसे सो रहे होंगे जो वहां तमाशबीन बने सबकुछ देखते रहे और कुछ नहीं किया... कितना आसान होता है ना, ऐसा कुछ करो या देखो और फिर घर जाकर सो जाओ... या भूल जाओ... लेकिन जिसपर बीती... वो 15 मिनट की घटना उसकी जिन्दगी का ऐसा नासूर है जो रह रहकर चुभेगा और उसमें से खून रिसेगा...
कई बार सोचता हूं... कि अगर भगवान सबको एक नजर से देखता है तो उसने बनाते वक्त इतनी नाइंसाफी क्यों की... क्यों लड़कियों को हीं हर तकलीफ झेलने की किस्मत दी... बलात्कार हो तो लड़की का, छेड़ा जाए तो लड़की को, सरेआम नंगा करके घुमाया जाये तो लड़की को और बच्चे पैदा करने का असहनीय दर्द भी झेलना पड़े तो लड़की को... क्यों.... क्यों लड़कों को उस दर्द का एहसास करने जैसी कोई सज़ा नहीं दी... क्यों बराबरी का हिस्सा क्यों नही दिया... और उसपर ये बेशर्मी भी दे दी हमें कि सरेआम किसी लड़की को नंगा होते हुए देखें और मुसकुराएं... क्या पटना में उस लड़की की जगह, उस भीड़ में से किसी की मां, बहन, बेटी या बीवी होती तो भी वो शख्स वैसे हीं देखता... क्या तब भी वो वैसे हीं आराम से जाकर सो जाता... क्या वो लड़की किसी की कुछ नहीं होते हुए भी एक इंसान नहीं थी... जिसे खुश रहने का हक है... जिसे इज्जत से रहने का हक है... जिसे जिन्दगी जीने का हक है... लेकिन जिसे हमसब ने मिलकर एक ऐसा दर्द दिया है जो कभी नहीं जायेगा... क्यों... क्यों हुआ ये सब... और क्यों बदलता नहीं कुछ भी???

Friday, July 17, 2009

बांधो बस्ता, आगे बढ़ो......

बांधो बस्ता आगे बढ़ो
लंबा है रस्ता आगे बढ़ो

माथे पर पसीना
हालत खस्ता
हर मोड़ पर पड़े
परेशानियों से वास्ता
रुकना मत
झुकना मत
सांसे थामे, सब से लड़ो
बांधो बस्ता, आगे बढ़ो
लंबा है रस्ता, आगे बढ़ो

जो गुज़र गया
उसका दुख कदमों को डगमगाये नही
जो मिल रहा है
वो सांसों में समाने से पहले गुज़र जाये नहीं
जो मिलेगा आगे
उसका कौतूहल और उत्साह मन में भरो
बांधो बस्ता आगे बढ़ो
लंबा है रस्ता, आगे बढ़ो

गलत मोड़ मुड़ने पर भी जोश कम ना हो
जो साथ नहीं अब उनका अफसोस न हो
थकते हों कदम या उफनती हो धड़कन
सफर के फासले का होश ना हो
जो बोझिल करे रास्ता
ऐसे बोझ को कंधे से उतारो
जीयो हर लम्हा
मील के पत्थर गाड़ो
सफर बने यादगार
हर कदम कुछ यूं ज़मीं पर रखो
बांधो बस्ता, आगे बढ़ो
लंबा है रस्ता, आगे बढ़ो

Monday, July 13, 2009

हम सब गाड़ियां हैं....

हर रोज़ गाड़ी से दफ्तर आना जाना होता है... रफ्तार से चलती कार और कान फाड़ते स्पीकर... इन्हीं दोनो का साथ होता है... पर एक दिन अचानक एक सोच ने साथ चलना शुरु कर दिया और आस-पास जो कुछ भी था उसे देखकर यही लगा कि हम सब जिन्दगी की सड़क पर चल रही गाड़ियां हैं.... हां, गाड़ियां... अलग अलग मॉडल, रंग, खूबियों और बुराईयों वाली गाड़ियां... किसी का रंग आकर्षक है तो किसी की रफ्तार... कुछ आवाज़ कर रहे हैं तो कुछ बिन आवाज़ हवा से बातें कर रहे हैं... सब अपने अपने सफर पर हैं... किसी को नहीं पता कि साथ चल रही कौन सी गाड़ी किस रेड लाईट पर अलग दिशा में चली जाएगी... किसी को नहीं पता अगले मोड़ पर कौन सी गाड़ी साथ चलने लगेगी... जीवन में कई ऐसे लोगों से मिला जिन्हें देखकर लगता था कि ये इतना स्लो क्यों हैं... जल्दी जल्दी और अच्छा काम क्यों नहीं कर सकते... ??? अब समझ में आया कि दरअसल वो सड़क पर चलने वाले ऑटो की तरह हैं... जो इससे तेज़ चल हीं नहीं सकते... और आवाज़ भी करेंगे ही करेंगे... लेकिन सबसे बड़ा खतरा ये होता कि उनकी चाल किसी बड़ी गाड़ी को डेंट ना पहुंचा दे...और जाने अनजाने बेचारे ऐसा कर हीं जाते हैं... और गाली भी खाते हैं...सड़क पर चलने वाली बसों को देखकर लगा कि ये लीडर(राजनीति वाले नहीं, लीड करने वाले) की तरह हैं जो जगह घेर कर चलते हैं और एक बड़े कुनबे को साथ लेकर चलने की कुव्वत रखते हैं....उनके सफर में कई लोग सवार होते हैं साथ, और जिन्दगी के छोटे मोटे एक्सीडेंट्स से उनका कुछ नहीं बिगड़ता और न हीं उसमें सवार लोगों का वो कुछ बिगड़ने देते हैं...इतना हीं नहीं... योग्यताओं के हिसाब से भी आप लोगों को मारुति 800 से लेकर लिमोज़ीन तक की कैटेगरी में बांट सकते हैं... पर कुछ बिन साइलेंसर की गाडियों की तरह होते हैं... शोर ज्यादा करते हैं काम कम... धुआं भी बहुत छोड़ते हैं... जो दूसरों की आंखों में आंसू तक ले आये...इनसे बचने के दो हीं तरीके हैं, या तो इन्हे आगे जाने दो या खुद अपनी रफ्तार बढ़ाकर तेज़ी से आगे निकल जाओ... य़ुवाओं को देखता हूं तो लगता है कि शो रुम से अभी अभी निकली नयी गाड़ियां हैं.... भले हीं ऑटो हों या ऑल्टो या फिर बीएमडब्लयू... सब में नयेपन का उत्साह और पर्फारमेंस में कसाव नज़र आता है... पर ये भी तय है कि वक्त के साथ इनमें भी बदलाव आ हीं जायेगा....साथ हीं आजकल के युवा, सीएनजी लगी गाड़ियों की तरह हैं... पहले की गाड़ियों की तरह ज्यादा प्रदूषण नहीं फैलाते... लेकिन अफसोस इनकी तादात कम है....अच्छा, ये भी मान कर चलिए, कि इस सफर में आप किसी न किसी गाड़ी को, चाहे-अनचाहे, ठोक हीं देंगे....लेकिन आपकुछ नहीं कर सकते, सिवाये इसके कि सफर जारी रखें... क्योंकि उस गाड़ी की मरम्मत भगवान के सर्विस सेंटर में हीं होगी...इसके अलावा गाड़ियों का मेनटेनेन्स तय कर देती है कि वो कितनी उम्र तक अपने पर्फारमेंस को बनाये रख पायेंगे... गाडियों की हालत, जिन्दगी की सड़क पर मिलने वाले इमोशनल गढ्ढे भी तय करते हैं... सर्वीसिंग कब कब हुई है... परेशानियों के पंक्चर कितने झेलने पड़े हैं... या फिर उत्साहरुपी पेट्रोल कितनी बार खत्म हुआ है... ये सबकुछ तय करते हैं कि गाड़ी कितनी शान से और कब तक चलेगी... और कब यमराज की क्रेन गाड़ी को उठाकर ले जायेगी... बस बचते चलना है... बढ़ते चलना है... सड़क पर दूसरी गाड़ियां आगे निकलने की कोशिश करेंगी हीं... कुछ गलत साइड से तो कुछ धक्का मारते हुए... हो सकता है परेशानियों का जाम भी मिले... गाड़ी थम तो सकती है पर रुकनी नहीं चाहिए... चलते जाना है... और हां, हर रोज़ गाड़ी को चमका कर, शान से निकलिए सफर पर... और कहते चलिए... 'बुरी नज़र वाले,तेरा मुंह काला' और 'जगह मिलने पर हीं पास देंगे'
ओके...टाटा... हार्न प्लीस... फिर मिलेंगे... (इसी ब्लॉग पर) :)
(निवेदन:- और हां, आप कौन सी गाड़ी हैं... खुद तय करें... और कमेंट सेक्शन में उसका ज़िक्र भी करें... किसी और गाड़ी का ज़िक्र करना चाहें तो वो भी करें और हां, मैं कौन सी गाड़ी लगता हूं आपको, ये भी स्वतंत्रतापूर्वक लिखें...!!!)

Wednesday, July 8, 2009

सही गलत क्या है....???

मन बार बार पूछता है
क्या है सही
क्या है गलत
तय करेगा कौन
कौन उठायेगा ये ज़हमत

पर बंध सी गयी है जिन्दगी
सही-गलत के दायरे में
मन के कोरे कागज पर
सपनों की कलम कुछ नया लिखती ही नहीं
पन्ने तो सारे भर रहे हैं
किसी और का हीं लिखा सुनकर, इस जीवन के मुशायरे में

जब सब पहले से तय कर
उसने भेज दिया हमें किरदार निभाने
तो हम क्यों लगे हैं
कौन हीरो, कौन विलेन
ये खुद से तय कर
उसकी काबिलियत को आज़माने

क्यों न हर रिश्ता दिल से जीयें
क्यों न हर बंधन प्यार के धागे से सीयें
क्या सही किया, क्या नहीं
इस परख को क्यों न मार दें आज यहीं
क्यों हो हमारे हर फैसले की सुनवाई
दिल के सही-गलत की कचहरी में
जब हमारे बस में नही जिन्दगी
तो क्यों न भूला दें हर गम मस्खरी में
हर दिन एक अनुभव हो
बस अनुभव
सही गलत, गलत सही
बहुत हुआ, बस अब और नहीं
बस अब और नहीं.....