Friday, January 8, 2010

गब्बर के साथ नाइंसाफी करने वाले हैं 'इडियट'

इडियट तीन और गब्बर एक.... बहुत नाइंसाफी है....
जी हां... सचमुच गब्बर के साथ नाइंसाफी हो रही है... हां, हां... वही शोले वाला गब्बर... दरअसल, आजकल थ्री इडियट्स की चर्चा आम है... जिसे देखो, इसे आजतक की सबसे कमाल की फिल्म बताने में जुटा है... कुछ पंडितों ने तो गब्बर तक को नहीं बख्शा और कह डाला कि आमिर की फिल्म 3 इडियट्स तो शोले की भी बाप है... औऱ जब तर्क वितर्क की बारी आयी तो आंकड़ों की जादूगरी दिखाने लगे... कह डाला कि इतने कम दिनों में तीन इडियट्स ने बाक्स ऑफिस पर तकरीबन 284 करोड़ का डाका डाला लेकिन जबकि गब्बर क्या, जय-वीरु और पूरे रामगढ़ की भी औकात नहीं थी कि इतनी कमाई कर पाते, इतने कम दिनों में....

एक बारगी सुनों तो सबकुछ सच लगता है लेकिन कुछ बातों पर गौर करें तो साफ हो जाएगा कि इडियट्स की तादात तीन नहीं बल्कि कहीं ज्यादा है...

सबसे पहली बात तो ये कि जब शोले रिलीज़ हुई थी,यानि की साल 1975 में तब टिकट के दाम हुआ करते थे एक या दो रुपए... और आज किसी भी शहर में टिकट की कीमत 150 रुपए से कम नहीं है.... तो फिर दोनों की कमाई की तुलना कैसे हो सकती है.... यानि बहुत साफ है कि जहां शोले के 1000 टिकट बिकने पर 1 या 2 हजार रुपए की कमाई होती होगी वहीं 3 इडियट्स के हज़ार टिकट 1.5 लाख का रेविन्यू जेनरेट करते हैं... तो तुलना हीं बेमानी है....

दूसरी बात ये कि शोले के ज़माने में थियेटर गिने चुने होते थे.... आजकल मल्टीप्लेक्सेस का ज़माना है... अब आप हीं सोचिए की 1975 के ज़माने के 150-200 सीटों वाले (वो भी खटमल और स्प्रिंग निकले हुए सीटों वाले) सिनेमा घरों में फिल्म देखने वालों की तादात और आज के अनगिनत मल्टीप्लेक्सेस में फिल्म देखने जाने वालों की संख्या में ज़मीन आसमान का फर्क होगा या नहीं....

तीसरी बात.... 70 के दशक में ज्यादातर घरों में फिल्म देखना पाप के समान था... अगर फिल्म देखी भी जानी है तो पूरा परिवार साथ जाकर देखेगा और वो भी संतोषी मां या कोई और धार्मिक फिल्म है तो बात कुछ और है... शोले जैसी फिल्म में अर्धनग्न हेलन के डांस से तो ज्यादातर परिवार हाय-तौबा करते थे.... लेकिन आजकल तो ए सर्टिफिकेट वाली फिल्में भी खुलेआम और धड़ल्ले से देखी जाती है... वो भी परिवार के साथ... फिल्म देखना शौक कम... जरुरत ज्यादा बन गया है... क्योंकि बड़े शहरों में मोटी कमाई करने वाले लोग रिलैक्स होना चाहते हैं...

चौथी बात.... गब्बर क्या, गब्बर के बाप ने भी सात समंदर पार रिलिज़ होने के बारे में नहीं सोचा होगा कभी उस ज़माने में... पर ये तीन इडियट्स तो हंसते-खेलते और उछलते हुए चले गए विदेश और कमा रहे हैं करोड़ों... अब बताइए... देसी गब्बर और मल्टीनैश्नल 3 इडियट्स की तुलना बेईमानी नहीं है....

हां, इतना जरुर है कि पायरेटेड सीडी की मार गब्बर ने नहीं झेली थी... जो थ्री इडियट्स झेल रहे हैं... पर बावजूद इसके कमाई के तौर पर दोनों की तुलना नहीं की जा सकती.... साथ हीं, दोनों फिल्मों का फ्लेवर भी बिलकुल जुदा है... एक्शन से भरपूर शोले का और थ्री इडियट्स का कमपैरिज़न कुछ वैसा हीं है जैसे आप चिकन बिरयानी और गुलाब जामुन का कमपैरिज़न करें.... संभव हीं नहीं है....

और ऐसे में सच यही है कि गब्बर आज भी इन तीन इडियट्स का बाप है... और सिर्फ आंकड़ों के आधार पर गब्बर को रुलाने वालों को खुद गब्बर हाथ में दोनाली बंदूक लिए ढूंढ़ रहा है और पूछ रहा है कि बताओ.. कितने इडियट्स थे... और शायद जवाब है.... सरदार 'अनगिनत'...