Sunday, May 3, 2009

!!! ये शहर काति़ल है !!!

(बड़े शहर में आये कुछ हीं साल गुज़रे हैं.... लेकिन अमूमन जब भी दोस्तो से या खुद से बातें करता हूं तो अनायास हीं ये बात मुंह से निकल जाती है कि 'मुझे ये शहर पसंद नहीं...'
एक दिन शांत दिमाग से बैठकर सोचा कि जिस शहर ने इतना दिया वो मुझे पसंद क्यों नहीं....??? जवाब नीचे लिख रहा हूं....हालांकि ये बताना भी लाज़मी है कि लिखते वक्त बैकग्राउंड में 'ये दिल्ली है मेरे यार' गाना भी चल रहा है...)


एक लाश पड़ी है
चारों तरफ भीड़ खड़ी है
सब शांत हैं, हैरान हैं, परेशान हैं
पर उनमें भी बाकि बची कहां जान है
और वो लाश जिसपर सबकी नजर है
वो मेरी है
लेकिन कातिल कोई इंसान नहीं बल्कि ये ‘शहर’ है


छोटे शहर के बड़े सपने, और ये महानगर
जाने कितनों को मार दिया जिन्दगी में घोल के जहर
रिश्ते-नाते…... इनके बिना जिंदगी अधूरी थी
यहां तो बिन काम किसी से मिलना मानो मजबूरी थी
राम हूं... राम हूं... सीता मिलेगी
इस बात का जाने कितना हल्ला मचाया
पर यहां तो हर सीता को
पांचाली बना पाया
हर रोज़ की महाभारत ने मेरा राम भी मार दिया
और चूं-चपड़ की तो Modern Culture का तीर धनुष तान दिया

यहां मां Mom तो पिता Pop है
बेटी बड़ी है, लेकिन बाप के सामने पहना डेढ़ बीत्ते का Top है
सब दिख रहा है.....पर किसे ???
इस सवाल का जवाब ढूंढे नहीं मिल रहा है

पूरा शहर वृंदावन बना है
हर प्रेमी जोड़ा कृष्ण और राधा है
फिज़ा में प्यार तो है
पर जो तब था और अब नहीं है वो मर्यादा है


दुपहिये पर पीछे बैठने वाली हर लड़की Girl Friend है
बहन को साथ घुमाना कहां आज का Trend है
यहां सब प्रैक्टिकल हैं... कूल हैं.....
और जो रिश्तों को दिल से लगाये
वो यहां इमोशनल Fool हैं

यहां Virgin होना शर्मनाक है
हमारे यहां को तमगा यहां छुपाने की बात है
बोलते हिंदी हैं
पर जब करना कुछ गलत हो तो उसे अंग्रेजी में ढ़ालते हैं
रेव पार्टी, वाइफ स्वैपिंग या Escort
यहां किसी को नहीं सालते हैं
मैं तो देख-देख हीं मर गया
पर इनके लिए.. इनके लिए तो यही जिन्दगी है शायद…


इसी महानगर में 14 साल की एक बच्ची मरी
साल की सबसे बड़ी मर्डर मिस्ट्री की खबर बनी
बाप ने मारा.... नौकर ने मारा.....
हत्यारा ढूंढने के लिए आज भी मचा है कहर
लेकिन गौर से देखो
उस जैसे कितनों को मारकर
मुस्करा रहा है ये कातिल शहर...........

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