Wednesday, February 24, 2010

रिश्तों में 'एक्सपेक्टेशन' नहीं होनी चाहिए

('मन' के कोने में दबी ये भावनाएं दरअसल मेरी नहीं बल्कि मेरे दोस्त नीरज की हैं... पेशे से अपना बिज़नेस चला रहे नीरज बेहद सुलझे हुए वय्क्तित्व हैं... उन्होंने कुछ लिखा तो मुझे ये कहकर भेजा कि इसे अपने शब्दों में खूबसूरत बना कर अपने ब्लॉग पर डालना लेकिन उनकी भावनाएं उनके हीं शब्दों में शब्दश: डाली हैं... क्योंकि ब्लॉग का नाम हीं 'मन' है और मन की बातें खूबसूरत या बदसूरत नहीं होती... वो सिर्फ सच्ची होती हैं... इसीलिए इस लेख की सच्चाई को बरकरार रहने दिया है... उम्मीद है नीरज ऐसा हीं बेहतर लिखते रहेंगे... शुभकामनाएं... :-))


जब आप किसी से अपना रिश्ता बनाते हैं तो उससे कोई एक्सपेक्टेशन या शर्त नहीं जुड़ी होती है... आप ये सोचकर किसी रिश्ते में नहीं जाते कि वो इंसान आपके लिए ऐसा करेगा या वैसा... आप उस रिश्ते में इसलिए जाते हैं क्योंकि वो आपको अच्छा लगता है... आप उसके साथ रहना चाहते हैं या वक्त बिताना चाहते हैं... पर समय के साथ जैसे जैसे आप उस इंसान के करीब आने लगते हैं आपके एक्सपेक्टेशन की लिस्ट लंबी होने लगती है... ऐसा क्यों होता है ???

आपने इस शर्त पर तो रिश्ता नहीं बनाया था... पर आप फिर भी चाहते हैं कि सामने वाला इंसान आपकी सारी इच्छाओं को पूरा करे... और जहां एक्सपेक्टेशन की बात आती है, रिश्ते कमज़ोर पड़ने लगते हैं...

रिश्तों का अपना महत्व होता है... अगर आप किसी से प्यार करते हैं और उसके साथ रहना चाहते हैं तो उसे अपनी इच्छाओं में ना बांधें... इससे दूरियां बढ़ने लगती हैं... प्यार या रिश्ते शर्तों पर नहीं बनाये जा सकते... अगर आप सच्चे मायनों में रिश्तों को जीना चाहते हैं तो एक दूसरे का सहारा बनने की कोशिश किजिए... ना कि एक दूसरे को अपने मुताबिक बदलने की कोशिश करें... अगर आप बिना एक्सपेक्टेशन या शर्त के एक दूसरे का साथ देंगे तो आपको खुद महसूस होगा कि आपकी सारी एक्सपेक्टेशन पूरी हो रही है... और फिर हर रिश्ता आपको सुंदर लगेगा क्योंकि उसकी खूबसूरती बदलते वक्त के बावजूद कायम रहेगी...

2 comments:

  1. sahi kaha.ye umeeden jab poori nahi hoti tabhi rishton me darar aati hai.

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