Thursday, April 8, 2010

तुम...

तुम...
मेरा प्यार ,
मेरा उद्गगार,
मेरा संघर्ष भी
मेरा हर्ष भी
मेरी कमी,
मेरी संपूर्णता
मेरी बुद्दिमानी
मेरी मूर्खता

तुम...

मेरा हर पल
मेरा कौतूहल
मेरी बेचैनी
मेरा करार
मेरा किनारा
मेरी मझदार

तुम...

आंसूओं से भीगी पलक भी
खुशी की झलक भी
तुम विरह
तुम मिलन भी
तुम तन मेरा
तुम मन भी
बिन तुम
सब गुमसुम
कभी तुम कहीं नहीं
और कभी हरकहीं
जाने कैसे तुम्हे समझाउं
तुम बिन
मैं कुछ भी नहीं...

4 comments:

  1. किस खूबसूरती से लिखा है आपने। मुँह से वाह निकल गया पढते ही।

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  2. शुक्रिया संजय जी... :-)

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  3. Dil ke dard ko aapne sabdon main bayan kar diya hai....bahut ki khoobsurat panktiyaan hain....

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  4. शुक्रिया ServerLost(नीरज)... लेकिन इन शब्दों में दर्द नहीं है... सिर्फ प्यार हीं प्यार है... क्योंकि प्यार हमेशा प्यार लेकर आता है... दर्द हमारा खुद का तैयार किया हुआ होता है... :-)

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