Saturday, February 20, 2010

जीवन का 'निर्मल' सच-- अलविदा

4 फरवरी 2010--- जाने माने एक्टर निर्मल पांडे या जैसा कि मैं उन्हें बुलाता था, निर्मल दा, लाइव इंडिया के कैम्पस में मौजूद सिगरेट का कश लगा रहे थे... मैंने गाड़ी पार्किंग में खड़ी की और उनका गले लगाने का चिर परिचित अंदाज़ मानों मेरा इंतज़ार कर रहा था.... बातचीत हालचाल पूछने से शुरु हुई औऱ फिर उन्होंने ज़िक्र छेड़ा कि वो बहुत जल्द कुछ बहुत बड़ा करने जा रहे हैं.... दुआ सलाम के बाद हम दोनों अपने अपने काम में लग गए....


18 फरवरी 2010--- लाइव इंडिया का मेकअप रुम... मैं मेकअप ले रहा था तभी साथ कि कुर्सी पर बैठी एक रिपोर्टर के पास किसी का फोन आया... उसका चौंकने वाले अंदाज़ में कहना कि 'क्या निर्मल पांडे मर गए'... मुझे भी चौंका गया... तेज़ी से मेकअप कर रहे मेरे हाथ एकदम से रुक गए... चेहरा,हाथ और दिल तीनों कान के रास्ते आने वाली उस आवाज़ का इंतज़ार करने लग गए जो ये बताती कि ये सिर्फ एक भद्दा मज़ाक था... लेकिन वो आवाज़ नहीं आयी, कभी नहीं....

20 फरवरी 2010--- ब्लॉग पर ये सब लिखते लिखते सबकुछ याद आ रहा है... निर्मल दा कि मौत की खबर सुनने के बाद जितना मैं सकते में था उतना हीं शायद कुछ और लोग भी... एक को-एंकर थोड़े हीं देर बाद टेलीविज़न की दुनिया की कुछ मनोरंजक खबरें सुना रहीं थीं लेकिन चेहरे पर भाव अब भी निर्मल दा के साथ थे शायद और इसीलिए वो सहज नहीं दिख रही थी... चेहरे से मुस्कान गायब थी उसकी... मजबूरन उसे स्टूडियो में जाकर याद दिलाना पड़ा कि हम सिर्फ एंकर नहीं, ऐक्टर्स भी हैं... जो हमें देख रहे हैं उन्हें नहीं पता कि हमारी जिन्दगी में क्या चल रहा है... और जैसे एक ऐक्टर के लिए शो चलता रहता है और दुनिया को कभी उसके दर्द का पता नहीं चलता... कुछ वैसे हीं हम एंकर्स का भी काम है... यकीन मानिए, आंसू और तकलीफ छुपाकर मुस्कुराते हुए 'नमस्कार' बोलने से बड़े चैलेंज कम हीं होंगे....

खैर, इन सबके बीच, निर्मल दा का शुक्रिया भी... इसलिए क्योंकि उन्होंने हमेशा प्यार दिया और सहज बने रहना तो सिखाया हीं, साथ हीं जाते जाते भी जीवन का सबसे 'निर्मल' सच बता गए और वो सच है.... 'अलविदा'... चार तारीख को मेरी दीवानगी नाम के कार्यक्रम में एंकर लिंक शूट करते वक्त उन्होंने कार्यक्रम के अंत में कहा था 'अलविदा'... लेकिन इस बात से अंजान कि ये कैमरे के सामने शायद उनका आखिरी 'अलविदा' है... या फिर यूं कहें कि दुनिया को आखिरी 'अलविदा'... जीवन का सबसे बड़ा सच यही है शायद... उसकी अनिश्चितता... उसकी Uncertainity... किसी को नहीं पता कि वो अगले कुछ मिनटों का मेहमान है यहां, कुछ घंटों का, दिनों का, महिनों का या फिर सालों का... लेकिन सब पागल हुए जा रहे हैं अपने अगले न जाने कितने सालों कि चिंता में... कुछ ऐसे भी हैं जो बीते सालों को हीं सहेजने में जुटे हैं... लेकिन निर्मल दा ने जिस निर्मल सत्य से रुबरु करवाया वो यही कहता है कि जिन्दा सिर्फ ये एक लम्हा है... वो एक लम्हा जिसमें मैं ये ब्लॉग लिख रहा हूं... और वो एक लम्हा जिसमें आप ये ब्लॉग पढ़ रहे हैं... सच से आंखें मोड़ना हीं इंसान को झूठा बना देता है... और ये झूठ तो इतना खतरनाक है कि हम सोच भी नहीं सकते... किसके अलविदा कहने का वक्त कब आ जाए, क्या पता... और इसलिए अलविदा कहने के पहले वो सबकुछ कहो जो हमेशा से अपने करीबियों या प्यार करने वालों को कहना चाहते थे... वो सबकुछ करो जो करना चाहते थे... वो सबकुछ देखो जो देखना चाहते थे... वो सबकुछ सुनो जो सुनना चाहते थे... ताकि अलविदा कहो भी तो शान से... और दिल में किसी 'काश...' के लिए कोई जगह ने बचे....

आप और आपकी सीख हमेशा याद रहेगी निर्मल दा... फिलहाल के लिए आपको अलविदा... हम फिर मिलेंगे... :-)

1 comment:

  1. Death is the ONLY truth of life .... And it will come without any appointments.. where ever we are... SO do the PENDING WORK...

    Right Said ....

    ReplyDelete