Monday, July 13, 2009

हम सब गाड़ियां हैं....

हर रोज़ गाड़ी से दफ्तर आना जाना होता है... रफ्तार से चलती कार और कान फाड़ते स्पीकर... इन्हीं दोनो का साथ होता है... पर एक दिन अचानक एक सोच ने साथ चलना शुरु कर दिया और आस-पास जो कुछ भी था उसे देखकर यही लगा कि हम सब जिन्दगी की सड़क पर चल रही गाड़ियां हैं.... हां, गाड़ियां... अलग अलग मॉडल, रंग, खूबियों और बुराईयों वाली गाड़ियां... किसी का रंग आकर्षक है तो किसी की रफ्तार... कुछ आवाज़ कर रहे हैं तो कुछ बिन आवाज़ हवा से बातें कर रहे हैं... सब अपने अपने सफर पर हैं... किसी को नहीं पता कि साथ चल रही कौन सी गाड़ी किस रेड लाईट पर अलग दिशा में चली जाएगी... किसी को नहीं पता अगले मोड़ पर कौन सी गाड़ी साथ चलने लगेगी... जीवन में कई ऐसे लोगों से मिला जिन्हें देखकर लगता था कि ये इतना स्लो क्यों हैं... जल्दी जल्दी और अच्छा काम क्यों नहीं कर सकते... ??? अब समझ में आया कि दरअसल वो सड़क पर चलने वाले ऑटो की तरह हैं... जो इससे तेज़ चल हीं नहीं सकते... और आवाज़ भी करेंगे ही करेंगे... लेकिन सबसे बड़ा खतरा ये होता कि उनकी चाल किसी बड़ी गाड़ी को डेंट ना पहुंचा दे...और जाने अनजाने बेचारे ऐसा कर हीं जाते हैं... और गाली भी खाते हैं...सड़क पर चलने वाली बसों को देखकर लगा कि ये लीडर(राजनीति वाले नहीं, लीड करने वाले) की तरह हैं जो जगह घेर कर चलते हैं और एक बड़े कुनबे को साथ लेकर चलने की कुव्वत रखते हैं....उनके सफर में कई लोग सवार होते हैं साथ, और जिन्दगी के छोटे मोटे एक्सीडेंट्स से उनका कुछ नहीं बिगड़ता और न हीं उसमें सवार लोगों का वो कुछ बिगड़ने देते हैं...इतना हीं नहीं... योग्यताओं के हिसाब से भी आप लोगों को मारुति 800 से लेकर लिमोज़ीन तक की कैटेगरी में बांट सकते हैं... पर कुछ बिन साइलेंसर की गाडियों की तरह होते हैं... शोर ज्यादा करते हैं काम कम... धुआं भी बहुत छोड़ते हैं... जो दूसरों की आंखों में आंसू तक ले आये...इनसे बचने के दो हीं तरीके हैं, या तो इन्हे आगे जाने दो या खुद अपनी रफ्तार बढ़ाकर तेज़ी से आगे निकल जाओ... य़ुवाओं को देखता हूं तो लगता है कि शो रुम से अभी अभी निकली नयी गाड़ियां हैं.... भले हीं ऑटो हों या ऑल्टो या फिर बीएमडब्लयू... सब में नयेपन का उत्साह और पर्फारमेंस में कसाव नज़र आता है... पर ये भी तय है कि वक्त के साथ इनमें भी बदलाव आ हीं जायेगा....साथ हीं आजकल के युवा, सीएनजी लगी गाड़ियों की तरह हैं... पहले की गाड़ियों की तरह ज्यादा प्रदूषण नहीं फैलाते... लेकिन अफसोस इनकी तादात कम है....अच्छा, ये भी मान कर चलिए, कि इस सफर में आप किसी न किसी गाड़ी को, चाहे-अनचाहे, ठोक हीं देंगे....लेकिन आपकुछ नहीं कर सकते, सिवाये इसके कि सफर जारी रखें... क्योंकि उस गाड़ी की मरम्मत भगवान के सर्विस सेंटर में हीं होगी...इसके अलावा गाड़ियों का मेनटेनेन्स तय कर देती है कि वो कितनी उम्र तक अपने पर्फारमेंस को बनाये रख पायेंगे... गाडियों की हालत, जिन्दगी की सड़क पर मिलने वाले इमोशनल गढ्ढे भी तय करते हैं... सर्वीसिंग कब कब हुई है... परेशानियों के पंक्चर कितने झेलने पड़े हैं... या फिर उत्साहरुपी पेट्रोल कितनी बार खत्म हुआ है... ये सबकुछ तय करते हैं कि गाड़ी कितनी शान से और कब तक चलेगी... और कब यमराज की क्रेन गाड़ी को उठाकर ले जायेगी... बस बचते चलना है... बढ़ते चलना है... सड़क पर दूसरी गाड़ियां आगे निकलने की कोशिश करेंगी हीं... कुछ गलत साइड से तो कुछ धक्का मारते हुए... हो सकता है परेशानियों का जाम भी मिले... गाड़ी थम तो सकती है पर रुकनी नहीं चाहिए... चलते जाना है... और हां, हर रोज़ गाड़ी को चमका कर, शान से निकलिए सफर पर... और कहते चलिए... 'बुरी नज़र वाले,तेरा मुंह काला' और 'जगह मिलने पर हीं पास देंगे'
ओके...टाटा... हार्न प्लीस... फिर मिलेंगे... (इसी ब्लॉग पर) :)
(निवेदन:- और हां, आप कौन सी गाड़ी हैं... खुद तय करें... और कमेंट सेक्शन में उसका ज़िक्र भी करें... किसी और गाड़ी का ज़िक्र करना चाहें तो वो भी करें और हां, मैं कौन सी गाड़ी लगता हूं आपको, ये भी स्वतंत्रतापूर्वक लिखें...!!!)

6 comments:

  1. क्या इस हिसाब से मैं zen बन सकता हूं । मुझे बताइएगा ज़रूर । ये छोटी गाड़ी मुझे बेहद अच्छी लगती है। और हां...भूसे की गाड़ी का जिक्र ज़रूर करिएगा...!!!!

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  2. तुम Zen क्या... तुममें तो Honda City बनने की काबिलियत है... और मैं कौन सी गाड़ी लगता हूं... ये तो तुमने बताया हीं नही...
    और ये भूसे की गाड़ी वाली बात हमारा सीक्रेट है.... इसे ब्लॉग पर जिक्र नहीं करेंगे.... :)

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  3. काफ़ी दिलचस्प लेख लिखा है। इंसानी ज़िंदगी और सड़क पर चलती गाड़ियों का सजीव चित्रण।

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  4. शुक्रिया मीनाक्षी.... पर फिलहाल तो तुम्हारा ये कमेंट खानापूर्ति मात्र लग रहा है लेकिन अगर तुम साथ में ये भी लिखती कि तुम खुद को जिन्दगी की सड़क पर चल रही कौन सी गाड़ी मानती हो तो ये कमेंट और भी दिलचस्प होता ... सोचना !!!!

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  5. घरवालों को नाज़ था, अपने इकलौते बेटे पर..इसलिए उन्होंने होंडा सिटी किस्म की गाड़ी को सजाकर ज़िंदगी के सफ़र में भेजा..। लेकिन हमें रुख़सारों से टकराती खुली हवा से इश्क था..सो हम उससे उतरकर ज़िंदगी की बाइक पर सवार हुए..। पत्रकारिता की गलियों में जाम मिला, कंक्रीट के जंगलों में कई बार रास्ता भटका..लेकिन एक सिग्नल पर हमराही मिला, दो से तीन हो गए..मैं, हवा और वो..। सोचा अब सफ़र आराम से कटेगा..। अभी एक ही मोड़ आया था कि तभी एक और कार आई और हम फिर अकेले थे..। अब ज़ज़्बातों के ईंधन पर पाबंदी है, दरकार दुनियादारी के सीएनजी ईंधन की है..। पहिये थमे हैं..। लेकिन फिर चले, रुके, रुककर फिर चले, कुछ इस तरह तय किया सफ़र हमने, भाई अच्छा लिखते हैं आप, बस शब्दों को थोड़ी संजीदगी की ज़रुरत है..।

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  6. शुक्रिया दीपक... अच्छा लगा तुमने ब्लॉग पढ़ा.... कमेंट भी शानदार है.... सबसे अच्छी बात तो ये कि तुम अपनी मर्ज़ी से बाइक पर सवार तो हो सके वरना कितने तो ऐसे हैं जो जिन्दगी भर जो गाड़ी मां-बाप ने बना दिया वही बने रह जाते हैं... और हां, आजकल जीवन ने Fatalism पर विश्वास करना सीखा दिया है... कह सकते हो कि एक तरीका भी है आगे बढ़ने का... वरना कई बार बहुत मुश्किल हो जाता है गिर कर उठना और फिर आगे बढ़ना... तुम्हारी सलाह पर ध्यान दूंगा.... और अच्छा लिखने की कोशिश करुंगा पर ब्लॉग का नाम हीं 'मन' है... और इसलिए मन में जो आता है उसे उतार देता हूं इस ब्लॉग पर... बिना शब्दों की परवाह किए बगैर... यहां तो कम से कम एंकरिंग जैसी हालत नहीं कि हर शब्द नाप तोल कर बोलो..हा..हा..हा... इसलिए जो मन में आया वो उकेर दिया... वैसा हां, तुम बहुत अच्छा लिखते हो... ईश्वर तुम्हें और अच्छा लिखने की क्षमता और ढ़ेरों खुशियां दे...आमीन...

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