वो भी नहीं, मैं भी नहीं...
( जैसे नदी के एक किनारे खड़े होकर देखो तो सिर्फ सामने वाला किनारा नज़र आता है वैसे हीं हर रिश्ते में अपना हिस्सा अमूमन नज़र नहीं आता.... और जो अगर दिख जाए तो बीच का फ़ासला नहीं रह जाता)
ग़लतियों से जुदा वो भी नहीं... मैं भी नहीं,
दोनों इन्सां हैं, ख़ुदा वो भी नहीं ... मैं भी नहीं,
हम दोनों एक दूसरे को इल्ज़ाम देते हैं मगर,
अपने अन्दर झांकता वो भी नहीं.. मैं भी नहीं,
लोगों ने कर दिया है दोनों में पैदा इख्तेलाफ़,
वरना... फ़ितरत का बुरा वो भी नहीं... मैं भी नहीं
मुख़्तलिफ़ सिमटों में, दोनों का सफ़र जारी रहा,
एक लम्हे को रुका वो भी नहीं... मैं भी नहीं
चाहते दोनों हैं एक दूसरे को मगर,
ये हक़ीकत मानता वो भी नहीं... मैं भी नहीं ।
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